शेन वार्न– जब ये नाम आपके ज़ेहन में आये तो क्रिकेट की एक दुलर्भ तस्वीर आपके सामने उभरती है. एक ऐसे शख्स की जो एक बादशाह की तरह क्रिकेट की दुनिया में राज करने वाला खिलाड़ी रहा. खिलाड़ियों का खिलाड़ी. दुनिया के लिए वार्न सबसे कामयाब लेग स्पिनर या यूं कहें क्रिकेट इतिहास का सबसे कामयाब स्पिनर के तौर पर जाने जाएंगे. भले ही मुथैया मुरलीधरण ने उनसे ज़्यादा विकेट हासिल कर लिए लेकिन प्रभुत्व और प्रेरणा के लिहाज़ से कोई भी उनके आगे नहीं ठहरता है.
लोग वार्न को स्पिन का शहंशाह के नाम से भी पुकारते हैं. हर कोई जानता है कि उनकी क्रिकेट की समझ काफी गहरी थी और वो इस खेल से जूनून की हद तक जुड़ा हुए थे. बावजूद इसके उन्हें कभी भी ऑस्ट्रेलियाई टेस्ट टीम की कप्तान नहीं दी गई. कहा गया कि मैदान के बाहर ख़बरों में बने रहना इसकी सबसे बड़ी वजह थी. शेन वार्न को ऑस्ट्रेलिया की कप्तानी न मिलने का बेहद अफसोस रहा लेकिन कभी भी उन्होंने अपने खेल पर इसका असर पड़ने नहीं दिया.
क्रिकेट को दरअसल इंग्लिश काउंटी हैंपशायर का शुक्रगुजा़र होना चाहिए जिन्होंने इस सम्मान के लायक समझा. इसी दौरान वार्न की दोस्ती केविन पीटरसन से हुई और वो उनके खेल से इतने प्रभावित हुए कि लगातार इंग्लैंड के चयनकर्ताओं पर दबाव बनाए रखा कि 2005 की एशेज़ सीरीज़ में पीटरसन को शामिल किया जाए. इसे अजीब इत्तेफाक ही कहा जाएगा कि उस सीरीज़ के सबसे कामयाब गेंदबाज़ वार्न थे लेकिन पीटरसन की शानदार बल्लेबाज़ी के चलते ही कंगारु वो सीरीज़ जीत नहीं पाए.
भारत से भी वार्न का रिश्ता बेहद दिलचस्प रहा. नब्बे के दशक में सचिन तेंदुलकर के साथ उनकी टक्कर क्रिकेट इतिहास की शानदार यादों में से एक रहेगी. रिटायर होने के बाद ललित मोदी उन्हें आईपीएल में खेलने के राजी करने कामयाब हुए.
राजस्थान रॉयल्स की कप्तानी ने एक बार फिर वार्न को पूरी दुनिया के सामने अपने एक और हुनर और क्रिकेट की सूझबूझ को दिखाने का मौका दिया. साधारण शुरुआत के बाद उनकी टीम ने चाहने वालों को निराश नहीं किया. वो भले ही दुनिया की नज़र में बहुत बड़े सुपरस्टार थे लेकिन रॉयल्स की कामयाबी ने दिखाया कि टीम से बड़ा कोई नहीं. वार्न पूराने स्कूल के कोच या फिर मेंटोर कह लें, जो कंप्यूटर की बजाए प्रतिभा, मीटिंग की बजाए प्रदर्शन को तव्वजोह देते थे. आईपीएल में रॉयल्स की कामयाबी उनके करियर का बेहद यादगार लम्हा है.
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शायद वो ये साबित करने में भी कामयाब रहे कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट और ऑस्ट्रेलिया ने एक बेहतर कप्तान को अपनी काबिलियत दिखाने का मौका ही नहीं दिया. वार्न को जो मौके नहीं मिले उसका उन्हें शायद अफसोस रहा होगा लेकिन कभी कोई कड़वाहट नहीं दिखी. वार्न की लीडरशीप उन तमाम आलोचकों के लिए भी एक जवाब था जिनका मानना था मैदान के बाहर की घटनाएं उन्हें युवा खिलाड़ियों को लीड करने में परेशान करेगी.
शेन वार्न के पूरे करियर का मूल-मंत्र एक ही रहा. मैदान और मैदान के बाहर की चीजें बिल्कुल दो अलग शख़्सियत की कहानी होती है. क्रिकेट ने हमेशा वार्न को क्रिकेटर के तौर पर देखा और पूरी दुनिया ने शायद उनके रंगीले व्यक्तित्व पर ज़्यादा ग़ौर किया.
क्रिकेट की बेहद प्रतिष्ठित किताब विजडन ने सदी के 5 महानतम खिलाड़ियों का चुनाव किया तो वार्न इकलौते ऐसे खिलाड़ी थे जो नब्बे के दशक का प्रतिनिधित्व करते थे. सचिन तेंदुवकर को भी इस सूची में जगह नहीं मिली थी. आप इसी बात से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि वार्न आखिर क्रिकेट इतिहास में क्या हस्ती रखते थे. आज शेन वार्न हमारे बीच नहीं है लेकिन क्रिकेट दुनिया के जिस मैदान पर भी खेला जाएगा, वार्न की लेग स्पिन की चर्चा ज़रुर होगी. हर कोई वार्न की तरह एक जादुई गेंदबाज़ तो नहीं बन सकता लेकिन अगर उनके जीवन से प्रेरणा ज़रुर ले सकता है.
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