Women and Mental Health: पूरी दुनिया में स्वास्थ्य क्षेत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती है मानसिक रोगियों का उपचार (Treatment of Mentally Ill) और उनकी देखभाल करना. सिजोफ्रेनिया (Schizophrenia), बायपोलर डिसऑर्डर, डिप्रेशन (Depression) और बेचैनी (Restlessness) जैसी गंभीर समस्याओं की पहचान कर पाना मुश्किल होता है. वहीं, इस बीमारी से जुड़ा सामाजिक कलंक अतिरिक्त दबाव डालता है. इन बीमारियों से ग्रसित रोगी भी इलाज कराने में देरी करते हैं, क्योंकि वे समाज से बहिष्कृत नहीं होना चाहते. चूंकि, महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कई सारी आम मानसिक बीमारी (Mental Health Problem) होने का खतरा ज्यादा रहता है, तो ऐसे में जागरूकता और जानकारी के अभाव में उनके लिए सही देखभाल काफी कठिन हो सकती है.
पुरुषों की तुलना में महिलाओं में मानसिक विकार अधिक
फोर्टिस हॉस्पिटल (मुलुंड, मुंबई) की काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट हीरक पटेल कहती हैं कि मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों का विकास आमतौर पर अनुवांशिकी और समाज में व्यक्ति की भूमिका और अनुभवों का परिणाम होता है. लिंग और लिंगभेद महत्वपूर्ण कारक हैं, जिनकी मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) और मानसिक बीमारी में बड़ी भूमिका हो सकती है. लिंग पुरुषों और महिलाओं के बीच शारीरिक अंतर को बताता है, जबकि जेंडर सामाजिक भूमिकाओं और व्यवहारों के बारे में. आमतौर पर समाज में पुरुषों और महिलाओं द्वारा यह प्रदर्शित होता है. शोध बताते हैं कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं में एंग्जायटी और डिप्रेशन जैसे मानसिक विकारों (Mental Disorders) के विकसित होने की आशंका दोगुनी होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, महिलाओं को अक्सर यौन उत्पीड़न या दुर्व्यवहार की वजह से आघात होने की आशंका ज्यादा होती है, इसलिए वे पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (post-traumatic stress disorder) से पीड़ित होती हैं. इसके अलावा, अलग-अलग चरणों में हॉर्मोन के स्तरों का प्रभाव महिलाओं के जीवन पर पड़ता है. प्रसव (Delivery) के बाद अवसाद और प्रसवोत्तर मनोविकृति (postpartum psychosis) के मामले में यह बात खासतौर से सच साबित होती है.
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प्रसव के बाद महिलाओं में डिप्रेशन खतरनाक
हीरक पटेल बताती हैं कि बच्चे को जन्म देने के बाद कुछ महिलाओं में होने वाले शारीरिक, भावनात्मक और व्यवहारिक बदलावों के जटिल मिश्रण के बीच, प्रसव के बाद अवसाद (Depression) खतरनाक है. खासकर तब, जब उसका इलाज ना किया जाए. प्रसव के बाद अवसाद के कुछ लक्षणों (Depression symptoms) में आपका बच्चे में रुचि न होना, ऐसा महसूस होना कि आप उनके साथ जुड़ाव नहीं बना पा रही हैं, हर समय रोना, अक्सर बिना किसी कारण के मन उदास हो जाना, बहुत अधिक गुस्सा और कर्कशता आदि शामिल है.
महिलाओं में मानसिक बीमारी बढ़ाने वाले रिस्क फैक्टर्स
कुछ महिलाओं में आम मानसिक बीमारी (common mental illness), खुद को नुकसान पहुंचाने वाला व्यवहार है, जो घरेलू हिंसा, खान-पान से संबंधित विकारों और बॉडी डिसमॉर्फिक डिस्ऑर्डर (Body Dysmorphic Disorder) की वजह से होता है. इस समस्या का मूल कारण अलग-अलग होता है. अलग-अलग व्यक्तियों में भिन्न हो सकता है. शारीरिक समस्याएं जैसे हॉर्मोन में बार-बार बदलाव की वजह से मूड स्विंग और बेचैनी हो सकती है. इनफर्टिलिटी, बाल यौन शोषण या ट्रॉमा, अकेलापन, भेदभाव, उपेक्षा जैसे जीवन के नकारात्मक अनुभव हो सकते हैं. हिंसा मनोवैज्ञानिक दबाव को और बढ़ा सकती है.
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क्यों नहीं करातीं महिलाएं उपचार
कुछ मामलों में, महिलाएं मदद या उपचार लेने को लेकर बेपरवाह रहती हैं. यहां तक कि डिप्रेशन और बेचैनी के गंभीर परिणामों का सामना करने के बावजूद भी वह इसे नजरअंदाज करती हैं. अपने संघर्षों को अपने अंदर दबा लेने की वजह से ऐसा होता है. उन्हें लक्षणों का पता नहीं होता और किस तरह उन पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, खासकर आगे आने वाले समय में, इसलिए मानसिक सेहत के बारे में जागरूकता फैलाना और इस बीमारी से जुड़े कलंक को कम करना बेहद जरूरी है.
मानसिक समस्याओं को यूं करें दूर
यदि आपको अपने विचारों, व्यवहार में लगातार बदलाव महसूस हो रहा हो या दो हफ्तों से ज्यादा मूड में बदलाव हो रहा हो, तो आपको मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए. खासकर तब, जब इन लक्षणों की वजह से आपके रोजमर्रा के कामों और रिश्तों पर प्रभाव पड़ रहा हो। इससे पहले कि कोई मानसिक समस्या बढ़े और आपकी संपूर्ण सेहत पर प्रभाव डाले, हमेशा किसी डॉक्टर या मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल से सलाह लें.
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