Ukraine Russia War Students Who Came Out Of Kyiv Narrated The Story Travelled By Standing In A Train For 9 Hours | Ukraine Russia War: कीव से बाहर निकले छात्रों ने सुनाई आपबीती

नई दिल्ली: यूक्रेन (Ukraine) की राजधानी कीव (Kyiv) से बाहर निकलने की मशक्कत कर रहे करीब 100 भारतीय छात्रों (Indian students) को लीव (Liv) शहर जाने के लिहाज से ट्रेन में सवार होने के लिए 10-10 के समूह में बंटना पड़ा. इनमें से एक छात्रा ने मंगलवार को आपबीती बयां की.

बीस साल की आशना पंडित ने फोन पर कहा, ‘‘हमें लगा कि हमारी मदद के लिए कोई नहीं आने वाला और अब यह हमें ही करना है.’’ वे ट्रेन से पोलैंड सीमा से करीब 80 किलोमीटर दूर पश्चिमी शहर लीव पहुंचे जहां युद्ध के हालात अपेक्षाकृत कम गंभीर हैं.

हम छोटे-छोटे समूहों में बंट गए
आशना ने बताया, ‘‘हम छोटे-छोटे समूहों में बंट गए और किसी तरह ट्रेन में चढ़ गए.’’ एक दिन पहले ही कीव में तरास शेवचेनको नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के ये छात्र अपने छात्रावास के पिछले दरवाजे से निकलकर राजधानी के मुख्य स्टेशन वोकजाल स्टेशन पहुंचने में सफल रहे थे.

अधिकारी ने नहीं कर सके बंदोबस्त
इन विद्यार्थियों ने देश के पश्चिमी हिस्से में जाने के लिए रेलवे स्टेशन तक पहुंचने के भारतीय मिशन के परामर्श के बाद यह सब किया. हालांकि उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारी उन्हें किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का बंदोबस्त नहीं कर सके.

गाजियाबाद के रहने वाले और यूक्रेन में एक ही कॉलेज में पढ़ने वाले आशना और उसके जुड़वां भाई अंश ने कहा कि परामर्श में कहा गया, ‘‘यूक्रेन रेलवे लोगों को निकालने के लिए विशेष ट्रेनें लगा रहा है’’, लेकिन जमीनी हकीकत अलग है. उन्होंने आरोप लगाया कि करीब 100 विद्यार्थियों को एक ट्रेन पर चढ़ने नहीं दिया गया और यूक्रेन के सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें वहां से हटा दिया. इनमें अधिकतर छात्राएं हैं.

कई ट्रेनों में नहीं चढ़ पाने के बाद ये छात्र अलग-अलग समूहों में बंट गये और किसी तरह लीव जाने वाली ट्रेन में सवार हो गये. लीव में अनेक दूतावासों के अधिकारी तैनात हैं.

खड़े-खड़े नौ घंटे की यात्रा
ट्रेन खचाखच भरी थी और वे किसी तरह खड़े-खड़े नौ घंटे की यात्रा कर सके. रुंधे गले से आशना ने एक वीडियो में कहा, ‘‘भारतीय दूतावास, हम आपसे अनुरोध करते हैं कि हमें जल्द से जल्द निकाला जाए.’’

गाजियाबाद में अंश और आशना के माता-पिता सुनीता और अनिल बहुत फिक्र कर रहे हैं. सुनीता ने कहा, ‘‘मेरे बच्चे परेशानी में हैं. उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है और दुख की बात है कि हम यहां बैठे-बैठे सरकार से उन्हें वापस लाने की अपील करने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे.’’

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