नई दिल्ली. यूक्रेन के साथ जारी युद्ध (Russia-Ukraine war) के बीच अमेरिका व यूरोपीय देशों ने रूस के कई बैंकों को स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम (SWIFT payment system) से बाहर कर दिया है. जानकारों का कहना है कि इससे रूस की आर्थिक स्थिति बुरी तरह चरमरा जाएगी.
फॉरेक्स और कमोडिटी (Forex & Commodity) एक्सपर्ट अजय केडिया का कहना है कि ग्लोबल लेवल पर होने वाले 70 फीसदी से अधिक भुगतान Society for Worldwide Inter-bank Financial Telecommuni-cation यानी SWIFT payment system के जरिये ही होते हैं. वैसे तो इसमें रूस की हिस्सेदारी महज 1.5 फीसदी है, लेकिन यूरोप, अमेरिका और एशिया के कई देशों के साथ उसका लेनदेन इसी सिस्टम पर टिका है.
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आखिर कैसे काम करता है SWIFT payment system
दुनियाभर के 200 देशों के करीब 11 हजार वित्तीय संस्थान SWIFT payment system से जुड़ हैं. यह बैंकों के बीच सूचनाएं आदान-प्रदान करने के लिए एक एक्सचेंज की तरह काम करता है और भुगतान से संबंधित जानकारियां भेजता है. यह सिलसिला तब तक चलता है, जब तक कि ट्रांजेक्शन का पैसा अपने अंतिम डेस्टिनेशन तक न पहुंच जाए. ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देश इस सिस्टम से बाहर हैं.
इस प्रतिबंध का रूस पर कितना असर
रूस यूरोपीय देशों के साथ गेहूं, क्रूड जैसे 13 कमोडिटी का मुख्य रूप से व्यापार करता है. SWIFT payment system से बाहर होने पर उसे लेनदेन के अन्य पारंपरिक विकल्पों का इस्तेमाल करना पड़ेगा, जो न सिर्फ ज्यादा खर्चीला होगा, बल्कि इसमें समय भी ज्यादा लगेगा. मौजूदा समय में इस पेमेंट सिस्टम में रूस का 121 अरब डॉलर का भुगतान फंसा हुआ है. यानी रूस को न तो फिलहाल ये पैसा मिल सकेगा और न ही आगे कोई लेनदेन हो सकेगा. ऐसा ही चलता रहा तो रूस की अर्थव्यवस्था बड़े संकट में फंस सकती है.
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रूस के पास हैं सीमित विकल्प
SWIFT से बाहर निकलकर रूस के लिए ग्लोबल लेवल पर ट्रेड करना मुश्किल हो जाएगा. हालांकि, रूस ने अपना खुद का पेमेंट सिस्टम बना रखा है, जिसमें अभी सिर्फ 23 देश शामिल हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक रूस, चीन के सिप्स (क्रॉस-बॉर्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम) का भी इस्तेमाल कर सकता है. चीन ने सिप्स को स्विफ्ट के विकल्प के तौर पर बनाया है, लेकिन अभी इसका इस्तेमाल बहुत कम होता है. अब संभावना है कि चीन के साथ रूस और अमेरिकी प्रतिबंधों के शिकार अन्य देश इसे प्रचलन में लाने की कोशिश कर सकते हैं.
पहले से तैयारी कर रहा था रूस
कई एक्सपर्ट का कहना है कि रूस ऐसे स्थिति से निपटने की पहले से ही तैयारी कर रहा था. यही कारण है कि उसने पिछले वर्षों में अमेरिकी ट्रेजरी से पैसे निकालकर सोना खरीदना शुरू कर दिया है. रूस के पास फिलहाल बड़ा सोने का भंडार हो चुका है, ताकि वह बिना अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के भी लेनदेन जारी रख सके.
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पलटवार किया तो क्या होगा
केडिया एडवाइजरी के डाइरेक्टर अजय केडिया का कहना है कि रूस पलटवार करते हुए यूरोपीय यूनियन पर भी इसी तरह के प्रतिबंध लगा सकता है. वह क्रूड सहित 13 कमोडिटी का एक्सपोर्ट बंद कर सकता है. इसके अलावा यूरोपियन यूनियन की कंपनियों ने रूसी संपत्तियों में 300 बिलियन डॉलर का निवेश कर रखा है. रूस इस धन को भी जब्त कर सकता है.
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भारत पर असर और उसके लिए अवसर
रूस और भारत के साथ इस साल अब तक 9.4 अरब डॉलर का व्यापार हो चुका है. दोनों देश कई बार यूरो में लेनदेन करते हैं तो कई बार रुपये में कारोबार होता है. लिहाजा इस प्रतिबंध का भारत पर खास असर नहीं होगा.
भारत ने दुनिया को सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) आधारित ग्लोबल पेमेंट इंटरफेस (GPI) अपनाने की सलाह दी है. यह रुपये की डिजिटल करेंसी आने के बाद प्रचलन में आएगी. भारतीय विशेषज्ञों का कहना है कि ई-रूपी के जरिये विदेशी मुद्रा का लेनदेन काफी सस्ता हो जाएगा. अभी G-20 देशों के साथ विदेशी मुद्रा लेनदेन पर 10 फीसदी की लागत आती है, जबकि भारतीय मुद्रा के साथ यह महज 3-5 फीसदी रह जाएगी. साथ ही नया सिस्टम लागू होता है तो भारतीय निर्यातकों को भी इसका फायदा मिलेगा, जबकि घरेलू मुद्रा का ग्लोबल मार्केट में रुतबा बढ़ जाएगा.
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