
दर्शकों
को
पसंद
आ
रही
फिल्म
एक
दर्शक
ने
लिखा
गंगूबाई
नाम
के
एक
किरदार
के
सेक्स
का
व्यापार
करने
के
बावजूद,
पॉज़िटिव
कहानी
को
परदे
पर
सफलता
पूर्वक
उतार
पाना,
भारतीय
फिल्म
इंडस्ट्री
जहां
ये
विषय
अभी
भी
असहज
है,
उसके
लिए
एक
बहुत
बड़ा
कदम
है।
गंगूबाई,
महामारी
में
अटकी
हुई
वो
फिल्म
है
जो
इतने
इंतज़ार
की
हकदार
थी
और
इतने
लंबे
इंतज़ार
के
बाद
फिल्मों
से
वंचित
हर
सिनेमा
प्रेमी
के
लिए
ज़ुबान
पर
नमक
की
तरह
है।
भूरे,
गहरे
रंगों
में
लिपटी
ये
सफेद
फिल्म
एक
शानदार
सेट
पर
भले
ही
खड़ी
हो
लेकिन
ये
सेट
आपको
उस
दुनिया
को
यकीन
दिलाता
है
जो
भंसाली
ने
बनाई
है।

दर्शकों
ने
शेयर
किए
अपने
अनुभव
इस
फिल्म
के
बारे
में
सबसे
खास
बात
ये
है
कि
ये
फिल्म
एक
बेहद
ईमानदार
कोशिश
है
एक
आम
सी
कहानी
को
एक
भव्य
तरीके
से
सुनाने
की
और
ये
कोशिश
आपको
छूती
है।
बहुत
मुश्किल
से
ऐसी
कहानियों
को
इतने
बड़े
बजट
में
इतने
भव्य
सूत्र
में
पिरोया
जाता
है।
एक
शानदार
कास्ट,
इस
कोशिश
को
और
सफल
बनाती
है।

देती
है
दमदार
मेसेज
एक
दर्शक
ने
फिल्म
के
मेसेज
की
ओर
ध्यान
खींचते
हुए
लिखा
–
फिल्म
में
गंगूबाई
की
निडर
और
बहादुर
हीरो
वाली
छवि
आमतौर
पर
सेक्स
वर्कर
की
इमेज
के
बिल्कुल
विपरीत
है
जिसे
सिनेमा
में
अक्सर
किसी
चीज़
की
तरह
या
फिर
किसी
बेचारी
शिकार
की
तरह
देखा
जाता
है।
वहीं
सामाजिक
दबाव
के
बीच
भी
अपने
हक
के
लिए
राजनीति
में
उतरना
और
सेक्स
वर्कर
के
उत्पीड़न
के
खिलाफ
आवाज़
उठाते
हुए
उन्हें
कानूनी
तौर
पर
न्याय
दिलाना,
सिनेमा
के
इंटरटेनमेंट
के
साथ
इस
फिल्म
के
मेसेज
को
तत्काल
रूप
से
बेहद
ज़रूरी
बना
देता
है।

गंगूबाई
देखना
बेहद
शानदार
अनुभव
था
फिल्म
देखने
वाले
एक
और
दर्शक
ने
लिखा
–
मैं
भारतीय
फिल्मों
से
ज़्यादा
करीबी
रिश्ता
नहीं
रखती
हूं
लेकिन
इस
समय
मैं
पूरी
तरह
रोमांचित
हूं।
क्या
ये
बहुत
फिल्मी
लग
रहा
है?
होगा
शायद।
पर
क्या
ये
इंटरटेनमेंट
का
स्तर
बनाए
रखता
है
?
बिल्कुल।
मैं
इस
फिल्म
की
लंबाई
के
बारे
में
थोड़ी
चिंतित
ज़रूर
थी
लेकिन
ये
फिल्म
कैसे
खत्म
हो
गई
मुझे
पता
ही
नहीं
चला।
आंखें
भंसाली
की
दुनिया
की
चकाचौंध
में
खो
जाती
हैं
और
इस
बेहद
अहम
मुद्दे
के
बारे
में
दिमाग
सोचने
लग
जाता
है।
गंगूबाई
एक
गुंडी
महिला
है
लेकिन
क्या
महिला
है।
उम्मीद
करती
हूं
कि
आलिया
भट्ट
इस
फिल्म
के
बाद
एक
सुपरस्टार
बन
जाएं।
स्क्रीन
पर
वो
जिस
तरह
मज़बूत
और
दृढ़
होने
के
बावजूद
अपनी
आंखों
में
एक
लाचारी
और
मायूसी
लिए
चलती
हैं,
वो
देखना
शानदार
अनुभव
था।

दर्शकों
ने
बताया
भंसाली
को
जादूगर
एक
दर्शक
की
प्रतिक्रिया
कुछ
यूं
थी
–
कहते
हैं
कि
सफेद
रंग
सबसे
अनोखा
होता
है
क्योंकि
इसमें
इंद्रधनुष
के
सारे
रंग
समाहित
होते
हैं।
गंगूबाई
काठियवाड़ी
में
भी
मुझे
भावनाओं
के
सारे
रंग
दिखाई
दिए
जश्न,
ईमानदारी,
परोपकार,
ज़िम्मेदारी,
एहसान
और
प्यार
का
हर
एक
रंग।
आलिया
भट्ट
तुम्हें
सलाम
है
इस
शानदार
किरदार
को
इतने
बेहतरीन
तरीके
से
निभाने
के
लिए।
जब
से
मैंने
गंगा
को
गंगू
बनते
देखा,
तब
से
मैंने
रोना
शुरू
कर
दिया।
पूरी
फिल्म
में
मैं
कभी
हंसी
और
कभी
रोई।
शब्द
ही
नहीं
हैं।
भंसाली,
आप
एक
जादूगर
हैं।

फिल्म
के
डायलॉग्स
की
भी
तारीफ
दर्शकों
ने
फिल्म
के
डायलॉग्स
और
आलिया
दोनों
की
भर
भर
कर
तारीफ
की।
इस
फिल्म
के
डायलॉग्स
बेहद
संजीदा
हैं
जो
आपको
आलिया
के
दर्द
से
भी
जोड़ेंगे
और
उसकी
मुस्कुराहट
के
साथ
भी।
मुझे
बहुत
पसंद
आया
कि
ये
फिल्म
ज़िंदगी
के
अलग
अलग
हिस्सों
में
बंटी
हुई
है
जिससे
कि
फिल्म
की
गति
बनी
रहती
है
और
आलिया
के
किरदार
को
भी
आपसे
अपनी
गति
से
जुड़ने
का
मौका
मिलता
है।
स्क्रीन
पर
ढोलीड़ा
देखना
एक
शानदार
अनुभव
था।

आलिया
के
करियर
का
बेस्ट
किरदार
आलिया
भट्ट
ने
इस
फिल्म
में
अपना
सब
कुछ
दांव
पर
लगा
दिया
है।
सारी
मेहनत,
सारी
कला
और
इसे
अपने
करियर
की
बेस्ट
फिल्म
बना
दिया
है।
कहीं
से
कोई
कमी
नहीं
दिखाई
देती
है
और
ये
परफेक्शन
स्क्रीन
पर
दिखता
है।
आलिया
ने
जिस
तरह
अपने
किरदार
के
लिए
अपनी
बोली
और
आवाज़
पर
काम
करते
हुए
परफेक्ट
डायलॉग
डिलीवरी
दी
है,
उसका
कोई
भी
फैन
बन
जाएगा।